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चीन से रिश्ता क्यों जोड़ रहे हैं भारत के पड़ोसी?

 24 Apr 2024

दुनिया तेजी से बदल रही है और भारत भी तेजी से बदल रहा है। कुछ समय से प्रधानमंत्री मोदी बार-बार ये दावा कर रहे हैं कि भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। जी-20 की अध्यक्षता हमारे पास थी जिसको लेकर पूरे भारत में धूम मचाई गई। बहुत लोगों को विश्वास है कि भारत एक अभूतपूर्व स्थिति में है। सम्मान की दृष्टि से दुनिया में सबसे ज़्यादा हैसियत वाले देशों में भारत भी है। लेकिन भारत के पड़ोसी देशों को यह बात समझ क्यों नहीं आ रही? भारत पर आश्रित रहने वाले छोटे से देश मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने पिछले दिनों कहा था कि भारत 15 मार्च 2024 तक अपनी सेना को उनके देश से वापस बुला ले। भारत के अन्य पड़ोसी देशों में भी शायद ही कहीं भारत के प्रति अच्छी राय देखने को मिले। इन तमाम सवालों पर हमारे सलाहकार संपादक डॉ.पंकज श्रीवास्तव ने बात की वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे से। पेश है इस वीडियो इंटरव्यू का अविकल पाठ-


डॉ.पंकज श्रीवास्तव: मालदीव जैसे एक छोटे देश में जब कोई राष्ट्रपति शपथ लेता था तो वह पहले भारत आता था, लेकिन आज यहां के राष्ट्रपति चीन जा रहे हैं। कहा जा रहा है हमारे तमाम पड़ोसी देश, नेपाल और श्रीलंका भी चीन की ओर जा रहे हैं। पाकिस्तान पहले ही चीन की तरफ जा चुका है। क्या भारत इस घटना से अलग थलग पड़ रहा है, आपकी इस पर क्या राय है?

प्रकाश के रे: अगर हम अपने देश में चाहते हैं कि युवाओ को रोजगार मिले, विकास हो, एफडीआई आये, विदेश की कंपनी आ कर सहयोग करें और भारत के पड़ोसी देशों कि मांग भी लगभग यही है। क्या भारत इन आकांक्षा को पूरा करने समर्थ है? जिन आकांक्षाओं को हम पूरा नहीं कर पा रहे हैं, चीन उसमे एंट्री कर रहा है। दूसरा जो हमारी विदेश नीति या वाणिज्य नीति है उसमें क्या कोई कमी है। जिसकी वजह से वह लोग हमसे दूरी बनाकर चीन की ओर बढ़ रहे हैं। तीसरा, उन देशों में आंतरिक मामले क्या हैं जो सरकार पर दबाव बना रहे हैं। वहां के लोग सरकार के इस फैसले से संतुष्ट हैं कि सरकार चीन के साथ मिल कर काम कर रही है।  मालदीव कि जो नई सरकार बनी है उसने ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया है। निश्चित रूप से मालदीव में सेना की छोटी सी मौजदूगी है जिसका कोई महत्व भी नहीं है। मालदीव की संप्रभुता के लिए 80 के दशक में राजीव गांधी सरकार के समय जो मदद दी गई थी वो एक अच्छी बात का संकेत था। लेकिन मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ु ने इसको भावनात्मक मुद्दा बनाया जिस पर वह चुनाव में जीते भी। ऐसा नहीं है कि वह सिर्फ इस नारे की वजह से जीते। हमारे देश की तरह वहाँ भी महंगाई बढ़ रही है। मालदीव की पूरी अर्थव्यवस्था कोरोना के बाद पूरी तरह से गड़बड़ाई हुई है। मालदीव की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी हुई है। पहले वाली सरकार लम्बे समय से सत्ता में थी। जब लम्बे समय तक सत्ता में रहते हैं तो आप पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोप भी लगते हैं। इन सभी चीज़ो का चुनावी नतीजे पर असर पड़ता है। नये राष्ट्रपति ने यह नारा दिया है, तो इतनी जल्दी तो इस समस्या को हल नहीं कर सकते। मुइज़्ज़ु सिर्फ अपने वोटरों को यह बताना चाहते है कि उन्होंने सही सरकार को वोट दिया है। दुबई जलवायु सम्मेलन में मुइज़्ज़ु कि बातचीत प्रधानमंत्री नरेंद मोदी से हुई। बातचीत के बाद मुइज़्ज़ु ने कहा हमने इस बात को भारत के प्रधानमंत्री के समाने रखा कि भारत के साथ हमरा जो सहयोग रहा है, इसको आगे कैसे बढ़ाया जाये। जिससे संतुलन बना रहे। भारत को बोल देना चाहिए था कि हम एक टाइम फ्रेम बना लेते हैं और हम अपनी सेना हटा लगे। जब शांतिसेना श्रीलंका गई थी तब सेना भेजने की आलोचना की गई थी और हमारे बहुत सारे सैनिक शहीद हो गए थे। भारत की सेना को लगभग अपमानित हो कर लौटना पड़ा था। मालदीव में भी यही मुद्दा है। अगर आपके पास श्रीलंका जैसा उदाहरण है तो आपको अपनी सेना को वापस बुला लेना चाहिए। इसी बीच आपके पास मालदीव बनाम लक्षद्वीप का मुद्दा सामने आ गया। जब मालदीव के तीन मंत्रियों ने भारत के लिए आपत्तिजनक टिप्पड़ी की तो उन्हें तुरंत मंत्री पद से हटाया गया। मुइज़्ज़ु को समझ आ गया कि यह सही नहीं है। कूटनीति की किसी भी मर्यादा के तहत यह ठीक नहीं था। लेकिन जब उन मंत्रियों को पद से हटाया गया तो भारत को सकारात्मक हो कर सोचना चाहिए था न कि नकारात्मक। भारत के बड़े- बड़े अखबारों के संपादक अपने लेख में इस मुद्दे को सिद्ध करने लगे। यह सब घटना तब हो रही थी जब मुइज़्ज़ु चीन की यात्रा पर थे।

डॉ.पं.श्री: मालदीव के राष्ट्रपति ने लौटकर एक बयान दिया कि हम अपनी संप्रभुता के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें कोई धमका नहीं सकता। उनकी भाषा थी कि हम आपकी बिग ब्रदर की भूमिका सहन नहीं करेंगे। चीन ने भी कहा हम मालदीव की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का समर्थन करते है। जिससे पूरी दुनिया में यह सन्देश गया कि चीन मालदीव के साथ है।

प्र.के.रे:  इन सभी परिस्थितियों के कारण चीन को यह सब कहने का मौका मिल गया। अगर भारत के मालदीव से अच्छे सम्बद्ध हों तो हमारी एक नज़र हिन्द महासागर पर भी बनी रहती है। हिन्द महासागर के जरिये अपने व्यापार के लिए आपको अफ्रीका और स्वेज नहर होकर यूरोप जाना होता है। चीन पर भी हिन्द महासागर से निगाह रखी जा सकती है। चीन के जहाज अक्सर हिन्द महासागर में देखने को मिलते रहते है। कुछ समय पहले भारत और कोलंबो के आसपास चीन का एक युद्धपोत देखा गया था, तब बात चली कि यह एक जासूसी जहाज है। श्रीलंका ने भारत के कहने पर उस जहाज को रुकने की इजाजत नहीं दी। लेकिन बाद में चीन और श्रीलंका के बीच क्या बात हुई कि वो जहाज कोलंबो में रुक गया। चीन ने इस जहाज के बारे में कहा कि यह सिर्फ समुद्री मौसम के अध्ययन के लिए है। लाल सागर में एक छोटा सा देश है जिबूती वहां पर चीन ने सैन्य ठिकाना बना रखा है। खबरों में आया कि चीन के छह युद्धपोत लाल सागर में उपस्थित है। इसका मतलब चीन हिन्द महासागर में सिर्फ यात्रा के लिए नहीं है, जो समुद्री खनिज हैं इस पर भी चीन की नजर है।

डॉ.पं.श्री: मतलब जहाँ पर भारत की नजर थी वहां पर चीन की नज़र बन चुकी है। मालदीव के राष्ट्रपति की जो भाषा है वह भारतीय राजनीति से जुड़ी हुई है, जैसे अपने पड़ोसी देश के खिलाफ बोलना। भारत में एक तरह का धार्मिक पुनरुत्थान नजर आ रहा है। मालदीव में 95 फीसदी आबादी मुस्लिम है। क्या इसका कोई असर दिखाता है?

प्र.के.रे: लम्बे समय तक भारत का बड़े भाई का नज़रिया रहा है। क्षेत्रफल, आबादी और संसाधन होने की वजह भारत एक बड़े भाई है। लेकिन बड़े भाई की भूमिका ऐसी नहीं होनी चाहिए कि दूसरे को लगे कि आप हमें प्रभवित करने की, दबाने की कोशिश कर रहे हैं। 1949 में भूटान के साथ एक बात हुई। उसमे भूटान ने विदेश नीति, रक्षा नीति का निर्णय लेने का जिम्मा भारत को दिया था। लेकिन चीज़े इस दिशा में जाती गईं कि भूटान को यह संदेश दिया गया कि सारी जिम्मेदारी भारत देख रहा है। बाद में भूटान ने इस संदेश को हटाने के लिए कहा। अब भूटान चीन के साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रहा है। दुनिया में हाइड्रो इलेक्ट्रिक लगभग सवा दो प्रतिशत हिस्सा नेपाल दे सकता है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल गए थे, तब उन्होंने कहा था कि हम नेपाल से 2030 तक दो हज़ार मेगा वाट बिजली खरीदेंगे। 2014 में सरकार ने बिजली खरीदने की एक नीति भी बनाई थी। 2018 में नीति में बदलाव किया कि हम ऐसे किसी देश के हाइड्रो प्रोजेक्ट से बिजली नहीं लेंगे जिसके साथ हमारा बिजली को लेकर कोई समझौता नहीं हैं। इस वजह से चीन जो निवेश नेपाल को दे रहा था, उसने उसे बंद कर दिया क्योंकि भारत ने बिजली खरीदना बंद कर दिया। इस वजह से नेपाल भारत से थोड़ा नाराज भी हो गया। चीन लगभग सात-आठ साल से नेपाल को एफडीआई देने वाला सबसे बड़ा देश है। चीन की बेल्ट रोड परियोजना में बांग्लादेश और नेपाल भी शामिल है। जब प्रधानमंत्री मोदी ग्रीस की यात्रा पर गये थे तो एक बंदरगाह लीज पर लेने की बात हुई थी, जो चीन का है।

डॉ.पं.श्री: बेल्ट रोड परियोजना जैसे बड़ा व्यपारिक मार्ग पड़ोसी देश मिलकर बना रहे है जिसमें भारत नहीं है। क्या भारत को इससे कोई नुकसान होगा ?

प्र.के.रे: भारत इस योजना में शामिल नहीं होता फिर भी इसका फायदा उठा सकता है। बांग्लादेश अपना सारा ट्रेड भारत से ही करता है। कम विकसित देशों की सूची में शामिल होने के कारण बांग्लादेश को कुछ छूट मिलती है। बांग्लादेश से जो भी वस्तु भारत में आती है उस पर किसी भी तरह का टैक्स नहीं लगता। एक ग्रुप है जिसमें आसियान के दस देश, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया,ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड है। इस ग्रुप में अब बांग्लादेश भी शामिल होने वाला है। अगर बांग्लादेश इस समूह में शामिल हो जाता है तो चीन अपने उत्पाद बांग्लादेश के जरिये भारत में भेजेगा। भारत अन्य देशों को आयात निर्यात शुल्क में छूट देने के पक्ष में तो था लेकिन चीन के साथ कोई समझौता नहीं कर सकता है। चीन के साथ हमारा बहुत बड़ा व्यापार घटा है। अमेरिका का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर चीन था,लेकिन अब मैक्सिको है। बहुत से लोग इस चीज़ को देख रहे है कि अमेरका का चीन पर प्रभाव कम हो रहा है। लेकिन चीन अपने तट से नहीं, मैक्सिको के जरिये अमेरिका से ट्रेड कर रहा है।

डॉ.पं.श्री: चीन हमेशा से प्रोडक्सन और मनुफक्चर पर ध्यान देता है लेकिन भारत सर्विस सेक्टर पर, जो एक बड़ी समस्या है। भूटान के डोकलाम को लेकर पिछले कुछ सालों में सैनिक संघर्ष जैसी परिस्थिति बनी। अचानक क्या हुआ कि भूटान डोकलाम को चीन को समर्पित करा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है और इसका क्या नुकसान है?

प्र.के.रे: चीन के 14 पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद थे, लेकिन 12 पड़ोसी देशो के साथ अपना सीमा विवाद उसने सुलझा लिया है। भारत और भूटान के साथ अभी भी सीमा विवाद है। चीन भूटान के तीन इलाके पर अपना दावा करता है। अभी जो बातचीत हुई है उसमें चीन ने कहा कि इसमें भारत की नज़र है। चीन कह रहा है कि आप डोकलाम का एक पठार हमें दे दो, बाकी दो हम छोड़ देंगे। भूटान के प्रधानमंत्री जब भारत आये थे तब उन्होंने भारत से रेल प्रोजेक्ट को लेकर बात की थी। भूटान के प्रधानमंत्री ने कहा हम भारत के साथ भी अच्छे संबंध रखना चाहते हैं। भूटान का वीटो शक्ति वाले देशों के साथ कूटनीतिक संबंध भी भारत के जरिये ही है। इस बातचीत से यह होगा कि भूटान का एक वीटो पावर वाले देश चीन के साथ सीधा संबंध होगा। भूटान ने 100 किलोमीटर का एक क्षेत्र असम की सीमा के पास एक रास्ता बनाया है जिससे आप असम हो कर साउथ ईस्ट एशिया तक पहुंच सकते है। यह एक ऐसा क्षेत्र हो सकता है जहां भारत और चीन मिलकर व्यापार कर सकते है। जिससे हमारी जो डोकलाम को लेकर समस्या शायद कुछ कम हो जाये।

डॉ.पं.श्री: 2019 में भाजपा का घोषणा पत्र में यह बात कही गई थी कि पड़ोसी प्रथम। लेकिन आज की स्थिति देखें तो भारत के सभी पड़ोसी देश नाराज़ हैं अगर बांग्लादेश को छोड़ दें। ज़्यदातर देशों में भारत विरोधी भावनाएं और वहां की सरकार का रुख भी सही नहीं है। इसके लिए आप भारत सरकार की विदेश नीति को जिम्मेदार समझते है या चीन हमसे ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर रहा है?

प्र.के.रे: जब प्रधानमंत्री मोदी पहली बार शपथ ग्रहण कर रहे थे तो सार्क देशों के सभी नेता शामिल हुए थे। तो ऐसा लगा कि दक्षिण एशिया में एक नई चीज़ होगी। उसी समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हम एक रॉकेट साउथ एशिया को देंगे। सार्क की अंतिम शिखर बैठक 2014 में हुई थी, उस बैठक में भी बड़ी बड़ी बाते हुई थी। 2016 में सार्क सम्मेलन पाकिस्तान में होने वाला था लेकिन उरी घटना के कारण यह सम्मेलन नहीं हो सका। 2019 के घोषणा पत्र में भारतीय जनता पार्टी ने सार्क शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था।  अगर सार्क अच्छा काम करता तो हमें चीन को लेकर इतना आकांशित नहीं होना पड़ता। 2007 के सार्क सम्मेलन में भारत के कहने पर अफगानिस्तान को सदस्य बनाया गया और नेपाल के कहने पर चीन को ऑब्जर्वर स्टेटस मिला। भारत और पाकिस्तान एससीओ में एक साथ है। अभी ब्रिक्स में सऊदी अरब और ईरान शामिल हुए है।भारत, श्रीलंका, भूटान और श्रीलंका का भी एक समूह है। दक्षिण एशिया में यह मामला नहीं कि आपका व्यापार कितना बढ़ या घटा है। यह सारे देश मिलकर जो बिजनेस करते है, वह सिर्फ पांच प्रतिशत है। आप बाहर से सामान खरीद रहे हैं लेकिन हम आपस में समान खरीद नहीं सकते। ग्लोबल वार्मिंग इतना बढ़ रहा है कि भारत में पिछले साल एक भी ऐसा दिन नहीं गया जब कोई प्राकृतिक आपदा न आई हो। चीन में भी बड़ी-बड़ी बाढ़ की घटना हो रही है। समुद्र में जलस्तर बढ़ने के कारण श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश जैसे देशों का डूबने का संकट बना हुआ है। पड़ोसी प्रथम मतलब यह नहीं कि सिर्फ वेक्सीन देने से अच्छे संबंध बन सकते है, आपको और भी कार्य करने पड़ेगे। जैसे एक नीति थी ‘पूर्व की और देखो।’ इसको प्रधानमंत्री ने कर दिया ‘एक्ट ईस्ट।’ लेकिन यह सिर्फ नारा ही बनता दिख रहा है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकार कह रहे हैंं कि विश्व व्यवस्था में बड़े बदलाव आ रहे हैं। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि मल्टी-पोलर वर्ल्ड होना चाहिए। दादागिरी का जमाना गया। दूसरी तरफ हम देख रहे है कि युद्ध, गृहयुद्ध और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या है। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया भर में है तो आपको क्षेत्रवाद पर ध्यान पड़ेगा।

डॉ.पं.श्री: यानी क्षेत्रीय सहयोग, क्षेत्रीय सामंजस्य और क्षेत्रीय स्तर के बड़े बाजार हैं। डोकलाम में चीन, मालदीव में चीन और काठमांडू तक चीन का रेल नेटवर्क। जो नेपाल सांस्कृतिक दृष्टि और तमाम दूसरे ऐतिहासिक कारणों से भारत का एक विस्तार ही समझा जाता है, उस नेपाल का भी चीन की ओर जाना - इस को आप कैसे समझते है?

प्र.के.रे: नेपाल का चीन के पक्ष में जाना हमारी ही गलती है। 2015 में नेपाल में बहुत भयंकर भूकंप आया तो पड़ोसी देश होने के नाते नेपाल की मदद करने के लिए पहुंच गये। नेपाल के लोगों को भारत में नौकरी दी जाती है और पासपोर्ट वीज़ा को लेकर कोई समस्या नहीं है। नेपाल में जो भारतीय मीडिया भूकंप के समय गई थी, वह नेपाल के इस दुखद समय में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में लगी हुई थी। नेपाल के लोगों ने भारतीय मीडिया को भगाने के लिए जुलूस निकाला। कुछ दिनों बाद नेपाल में संविधान को लेकर बखेड़ा हुआ तो भारतीय सीमा को बंद कर दिया जिस वजह से ट्रको को रोका गया। भारत सरकार को इस समस्या को सकारात्मक हो कर हल करना चाहिये था। जब नेपाल राजतंत्र से लोकतंत्र की तरफ गया तो हमारे यहाँ एक तबके ने जुलूस निकला। जिससे कि एक बड़ी आबादी के खिलाफ माहौल बने। मालदीव का पूरा विपक्ष और आधी से ज्यादा आबादी भारत के पक्ष में बोल रहा है। बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के लोगों का नज़रिया भारत के प्रति सकारात्मक है। शायद भारत ही अपनी पॉलिसी को ठीक से लागू नहीं कर पा रहा। जब प्रधानमंत्री पापुआ गिनी गए तो वहां के प्रधानमंत्री ने मोदी के पैर छुए थे। इस को भी भारत की मीडिया को बड़ा चढ़ा कर दिखया था। पापुआ गिनी में भारतीय संस्कृति की पहचान होने कारण उन्होंने ऐसा किया होगा। जब पापुआ गिनी के प्रधानमंत्री बेल्ट रोड परियोजना के शिखर की बैठक में जाते है तो उनकी चर्चा मीडिया में नहीं होती। अभी जो एशियाड का आयोजन चीन में हुए, इसके मुख्य अतिथि नेपाल के प्रधानमंत्री थे। चीन जो दुनिया में एक बड़ी सैनिक शक्ति है, वहां की सोसायटी के लोग औसतन समृद्ध होने लगे हैं, उस देश का राष्ट्रपति अपने पड़ोसी देश नेपाल के प्रधानमंत्री को अपने साथ बैठाते है।

डॉ.पं.श्री: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तालिबान मानसिकता के बारे में बोला करते हैं। लेकिन तालिबान अफगानिस्तान में सरकार चला रहा है जिसके साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं। इस व्यवहार के बारे में आपकी क्या राय है?

प्र.के.रे: कोई भी सरकार, चाहे उसकी विदेश नीति हो या घरेलू नीति हो, वो चाहती है कि इसका असर उसके वोटरों पर पड़े। जो पड़ोसियों के साथ कर रहे हैं, मुझे लगता है कि ये घरेलू राजनीति से जुड़े मुद्दे पर ज़्यदा ध्यान देते है। टिप्पणीकार भी टेलीविज़न और अखबारों में भारत सरकार को सकरात्मक उपाय देने से क़तरा रहे हैं।

डॉ.पं.श्री: आम धारणा बन गई है कि यह सरकार अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती। 2019 में जो पुलवामा में अटैक हुआ इसको राजनीति का मुद्दा बनाया गया। क्या पाकिस्तान को घरेलू राजनीति के लिए उपयोग करना ठीक है? इससे क्या नुकसान है?

प्र.के.रे: पाकिस्तान की सरकार और वहां की सेना की नीति रही है कि उसने आतंकियों का अपना सहयोगी बना रखा है । ये लोग तालिबान के साथ सबसे बड़े सहयोगी माने जाते थे लेकिन आज तालिबान के साथ इनकी झड़पे होती रहती हैं। पाकिस्तान को अपनी इस नीति पर विचार करना चाहिये क्योंकि आतंकवाद जितना नुकसान बहार नहीं पहुंचा सका उससे ज्यादा लोग पाकिस्तान में मारे गए है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी बुरे दौर से गुजर रही है। पाकिस्तान का बेहतर होना पूरे दक्षिण एशिया के लिए जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तान की सीमा ईरान से मिलती है। जिससे भारत के स्वतंत्रता से पहले के ऐतिहासिक रिश्ते रहे है। इन सभी क्षेत्रों में शांति, विकास, जलवायु परिवर्तन और भविष्य कि परेशानी के लिए सबको मिलकर काम करना पड़ेगा।

राजनाथ सिंह 2016 में जब पाकिस्तान गए थे तो पता नहीं मीटिंग में क्या हुआ कि राजनाथ बिना लंच किए चले आये। अमर सिंह दुलत, जो हमारी रॉ के पूर्व चीफ रहे चुके हैं, उन्होंने पाकिस्तान के आईएसआई चीफ के साथ मिलकर एक बड़ी सुन्दर किताब लिखी है। उनका मेैं एक इंटरव्यू देख रहा था कि अगर कोई तनातनी हो जाती है, फिर भी ख़ुफ़िया संस्थओ के मुखिया आपस में संपर्क में रहते हैं। पाकिस्तान के साथ बातचीत करना हमारे लिए बड़ी बात नहीं है। प्रधनमंत्री ने कहा था कि पाकिस्तान की क्या चिंता करनी है, वह अपनी मौत खुद मरेगा। पाकिस्तान का इस्तेमाल चीन करता है, अगर अपनी विदेश नीति में स्वतंत्र फैसला लेते हैं तो अमेरिका पाकिस्तान का इस्तेमाल हमारे खिलाफ कर सकता है। अमेरिका फिर एक बार अफगानिस्तान का लिथियम लेने के लिए उपयोग कर रहा है। लिथियम के लिए अफगानिस्तान चीन के साथ समझौता कर रहा है। लिथियम का महत्व समझें कि इलेक्ट्रिक चीज़ो की बैटरी, जहाज के उपकरणों के लिए उसका इस्तेमाल होता है। अगर अमेरिका अफगानिस्तान में अपनी जगह बनाना चाहता है तो पाकिस्तान का इस्तेमाल कर सकता है। तो ऐसी लड़ाई जिसका भारत हिस्सा नहीं है फिर भी हम इस नुकसान से नहीं बच सकते। सार्क कोऑपरेशन के लिए है न झगड़ा करने के लिए। भारत और पाकिस्तान मिलकर सार्क को आगे बढ़ाएं। सार्क को फिर से जीवित करें। अपने आपसी मुद्दे के लिए सार्क को अपना मंच न बनाएं। दूसरा जो अपने छोटे-छोटे समूह बनाए हैं जैसे बिमटेक और भारत, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश का ग्रुप, उसको एक्टिव रखें। शंघाई ऑपरेशन समूह से साथ मिलकर हम अपने क्षेत्र में क्या कर सकते है। जैसे आप नेपाल से बिजली और बांग्लादेश से कपड़े खरीद रहे, श्रीलंका से अनाज माँगा सकते हैं। हम अपने कृषि उपकरणों को इन देशों में भेज सकते है। भारत शिक्षा और मेडिकल का बहुत बड़ा स्रोत है।

डॉ.पं.श्री: मेरी जानकारी में लक्षद्वीप में अभी पर्यटकों के लिए व्यवस्था ठीक नहीं है और वहां परमिट ले कर जाना होता है। आप मालदीव से तुलना करेंगे तो आप अपने क्षेत्र को बर्बाद कर देंगे। 

आपका बहुत धन्यवाद प्रकाश इस विषय को इतना विस्तार से समझने के लिए।